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किराये की कोख



किराये की कोख

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इस देश में सभ्य मानवता का, नैतिकता का एंव चरित्रता का पूरा पतन हो चुका है | एक तरफ देश में महिलाओं की पूजा होती है, बेटी बचाओ व बेटी पढ़ाओ तथा बेटी को आत्मनिर्भर बनाओ , महिलाओं की इज्जत आबरू बचाने की एंव उनके आत्मसम्मान को कायम रखने के बहुत बड़ी लम्बी चौड़ी बातें की जाती हैं और दूसरी तरफ इन महिलाओं के दूसरों के बच्चों को पैदा करने के लिये उन्हें व उनकी कोख को किराये पर देने के प्रावधान बनायें जाते हैं और उन्हें बच्चों को पैदा करने की यांत्रिक वस्तु समझा जाता है | क्या ऐसी महिलाओं से जन्मीं संताने इन्हें अपनी माँ कह सकेगीं ?
क्या ऐसी जन्मी संताने अपने पिता को सम्मान की दृस्टि से देखेगें ? क्या ऐसी संतानों को समाजी सम्मान प्राप्त हो सकेगा | क्या ऐसी महिलाओं को कभी समाजी सम्मान प्राप्त हो सकेगा ? क्या इस देश की महिलाओं को ऐसा बनाया जायेगा जैसा बनाया जा रहा है | क्या इसकी आड़ में मानव अंगों की तस्करी को तो अंजाम नहीं दिया जा रहा ? इससे अधिक घ्रणित महिलाओं के सम्मान के विरूद्ध अन्यायी कार्य और क्या हो सकता ? धन्य है इस देश के सत्तासीन और धन्य है हम सभी लोग जो आज धन के लालच में पूरी तरह संवेदनहीन हो चुके हैं | जिस परिवार समाज व देश में महिलाओं का आत्मसम्मान नहीं व परिवार समाज व देश स्वंय में अपराधयुक्त एंव रोजगारमुक्त और गुलाम है |


आकांक्षा सक्सेना
ब्लॉगर 'समाज और हम'

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