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अादर्श व्याख्यान


जस्टिस काटजू का अंतराग्नि से भरा व्याख्यान

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कानपुर आई आई टी के सांस्कृतिक महोत्सव "अंतराग्नि" में अपने व्याख्यान के दौरान मा.भारतीय सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश श्री मार्कंण्डेय काटजू ने कहा कि अंग्रेजों ने महात्मा गाँधी व जिन्ना का इस्तेमाल किया जिसके नकारात्मक परिणाम सामने आये | चीन पाकिस्तान के पीछे खड़ा है | देश के सैनिकों को बलि का बकरा बनाया जा रहा है | जिन्हें आरक्षण प्राप्त है वे सभी अब समर्थवान है और महिलाओं को भी आरक्षण की जरूरत नहीं | वे भी समर्थवान है और यदि सुविधायें देनी ही हैं तो उन्हें दी जायें जो आर्थिक रूप से कमजोर हैं | इस देश को अच्छी शिक्षा व अच्छे रोजगार की जरूरत है | उन्होने कहा राजनीति एक ऐसा पेशा बन गयी है कि जहाँ  धर्म व जाति के नाम से खेल होता है | लोकसभा का चुनाव लड़ने में 10करोड़ रूपैया खर्च होता है | ऐसे में तो भ्रष्टाचार होना ही है | इससे नौकरशाही भी अछूती नहीं है | देश के कानून एवं न्याय व्यवस्था से देश की व्यवस्था ही ध्वस्त हो रही है | इसे बचाने के लिये क्रांति व शस्त्र क्रान्ति की जरूरत है | हालात इतने खराब हो चुकें हैं कि इन्हें सुधारने के लिये त्याग जरूरी हो गया है | जिस तरह के हालात चल रहे हैं उससे युद्ध सम्भव है |
    अत:, उनके व्याख्यान से यह स्पष्ट है कि सन् 1949 में विश्व की संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में पश्चिमी देशों ने चीन को शामिल नहीं करना चाहा था और भारत को शामिल करना चाहा था | इन देशों के विरोध के बावजूद भी तत्कालीन भारत के प्रधानमंत्री पं.जवाहर लाल नेहरू ने अपनी पुरजोर पैरवी कर पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चीन को यह सोच कर सामिल करवा दिया था कि भारत के हिमालय का क्षेत्र चीन सुरक्षित किये रहेगा | उस चीन ने सन् 1950 में भारत के तिब्बत पर ही अपना कब्जा कर लिया व सन् 1962 में भारत पर हमला कर युद्ध में भारत को हरा दिया और अब चीन पाकिस्तान के पीछे खड़ा है जो भारत को इस परिषद में भी स्थाईरूप से ब्रिटिश, अमरीका, रूस, फ्रांस व अपने साथ भारत को अपने स्थान पर सामिल नहीं होने दे रहा और पाकिस्तान के माध्यम से भारत को असंतुलित किये हुये है |
      कानून एवं न्याय व्यवस्था की हालत यह है कि सन् 1949 से ही सभ्य भारतीय समान नागरिक आचार संहिता के क्रियान्वन का मामला देश के केन्द्रीय विधि आयोग के यहाँ विचाराधीन पड़ा हुआ है | भारतीय नागरिकों के विवाह, जन्म व मृत्यु के पंजीकरण, बीमाकरण व लाईसैंसीकरण के अधिनियमों के अनुसार पंजीकृत वैधानिक, बीमाकृत संवैधानिक व लाईसैंसीकृत कानूनी सर्वोच्च न्यायिक रूप से विवाहित, जन्में व मृतक स्त्री,पुरूष व किन्नर भारतीय नागरिक व्यक्ति की समदर्शी, पारदर्शी एवं सर्वोच्च न्यायिक स्पष्ट परिभाषा ही देश के कानूनों में दर्ज नहीं है और न ही इन अधिनियमों का उल्लंघन अक्षम्य अपराध दर्ज है | भला ! लोगों को समदर्शी, पारदर्शी, सर्वोच्च न्यायिक, सस्ता एवं त्वरित न्याय कैसे प्राप्त हो सकता है ? इसलिये भारतीय जनजीवन शिक्षित, अपराधमुक्त, रोजगारयुक्त एवं सर्वोच्च न्याययुक्त संतुलित नहीं है |
    ऐसा प्रतीत होता है कि विश्व की संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद स्वंय में एक पूर्वनिर्धारित "सप्त ऋषि मंडल" है जिसमें पाँच सदस्य के साथ कोई  छठंवा सदस्य एवं इन सब का मुखिया सांतवा सदस्य भारत सामिल होना चाहिये | ताकि यह मंडल संतुलित एवं पूरा हो सके जिससे कि दुनियां की सभी व्यवस्थायें भी संतुलित एवं पूरी हो सके और आतंकी, भ्रष्टाचारी व दुराचारी जीवन के टैक्सचोरी के कालेधन के जमाखोरों का पूर्वनियोजित धोखाधड़ी का षडयंत्र उन्मूलित हो सके और उनकी यह गंदी राजनीति समाप्त हो सके | नि:संदेह जस्टिस काटजू का व्याख्यान अंतराग्नि से भरा विचारणीय एंव सराहनीय व्याख्यान है |

आकांक्षा सक्सेना
ब्लॉगर समाज और हम 

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